दोस्तों वर्षों के अथक परिश्रम व जीतोड़ मेहनत के पश्चात यह पुस्तक मैं आप लोगों के सामने लाने में सफल हो पाया हूँ । यह एक पुस्तक मात्र है या यह एक नया सिद्धान्त हैं जीवन जीने का । यह आप स्वयं इस पुस्तक को पढ़कर निर्धारित करें । पिछले लगभग 10-12 वर्षों से तो मैं इसमें पूरी तरह डूबा हुआ हूँ । लगभग 20 वर्ष पूर्व समाज में स्वच्छता क्रान्ति की आवश्यकता को लेकर शुरू हुआ यह सफर, कैसे आगे बढ़ते हुए पिलखुवा की गलियों को साफ करते हुए, गाज़ियाबाद के पार्कों से होते हुए मुम्बई की सोसायटी तक पहुंच गया पता ही नहीं चला । इसमें लियो क्लब व लायन्स क्लब ओबेराय काम्पलेक्स अंधेरी लोखण्डवाला मुम्बई का बहुत बड़ा योगदान रहा है जिसमें मेरे मार्ग दर्शक राजू मनवानी जी (दिशा क्लेक्शन अँधेरी लोखंडवाला मुम्बई) का आशीर्वाद मुख्य रूप से प्राप्त हुआ । अन्धेरी लोखण्डवाला की सड़कों व सोसाइटियों को देखकर जब मैं दिल्ली से 45 किलो मीटर लखनऊ की ओर एन.एच.-24 पर हापुड़ से पहले पिलखुवा आकर यहाँ की गलियों से तुलना करता था तो बड़ी ग्लानि होती थी और अपने प्यारे पिलखुवा को कैसे स्वच्छ बनाया जाये ? उसके लिये क्या करूं ? किस प्रकार यहाँ की जनता को मोटीवेट कर ? समझ नहीं आता था फिर भी यहाँ आता और सफाई अभियान शुरू कर देता । 2007 से तो पूरी तरह से 3-3 महीने के सफाई अभियान चलाने शुरू कर दिये जिसमें पिलखुवा के कई-कई वार्डों को साफ करना तथा रिक्शा द्वारा घर -घर से कूड़ा उठवाना शुरू किया । ऐसा लगातार वर्षों तक चलता रहा । मलीन बस्तियों में सफाई करवाते समय वहाँ मच्छरों के द्वारा होने वाली मलेरिया, चिकनगुनिया व डेंगू जैसी बीमारी से गरीब लोगों को तृस्त देखा तो दूसरी क्रान्ति स्वास्थ्य क्रान्ति की आवश्यकता महसूस हुई तो स्वयं कमर पर मच्छर की दवाई का छिड़काव करने वाली मशीन को लाध लिया और 13 अप्रैल 2007 से पूरे शहर में व आस पास के गावों में दवाई के छिड़काव का कार्य शुरु किया जिसके प्रतिदिन करने पर एक से डेढ़ महीना लगता था व हजारों रूपये खर्च होते थे और तीन महीने की सफाई अभियान में 25 सफाई कर्मचारियों के साथ लगभग डेढ़ से दो लाख रूपये लगते थे । दवाई के छिड़काव की जय । हर की गलियों में करता था तो बहुत से ग़रीब और बहुत से अच्छे खासे धनवान लोग भी मुझे नगर पालिका का कर्मचारी समझकर डाट लगाकर काम कराते थे और अपने घरों में छिड़काव के लिये कहते थे । जिसे मैं सहर्ष स्वीकार कर लेता था | लेकिन जब मैं ग़रीबों के घरों में जाता था तो वहाँ ग़रीबी की पराकाष्ठा को महसूस किया है मैंने ।
एक ओर मुम्बई की फिल्मी दुनिया के ऐशोआराम की दुनियाँ और दूसरी तरफ पिलखुवा के अशोक नगर, भोलापुरी, आर्यनगर, सद्दीकपुरा, मण्डी, छिद्दापुरी व अन्य मौहल्ले में रहने वाले लोगों का जीवन । मेरा मन मुम्बई से बिल्कुल हटने लगा और उनके (पिलखुवा वासियों के) स्वास्थ्य को सुधारने के लिये रामा मैडिकल के फ्री स्वास्थ्य चैक-अप कैम्प साथ में लगाने शुरू किये वो भी इस शर्त पर कि किसी भी व्यक्ति की, कोई भी, कितनी भी बड़ी बीमारी डायग्नोस होने पर उस व्यक्ति को दवाईयाँ, आपरेशन, बैड, खाना इत्यादि सब कुछ मुफ़्त देना होगा । मुझे बड़ी ख़ुशी हुई थी क्योंकि रामा मैडिकल ने ऐसा ही किया, मन को काफी सन्तुष्टि हो रही थी । लेकिन मैंने पाया कि लोग अपने स्वास्थ्य को ठीक कराने के लिये भी नहीं आ पा रहे हैं जब कि सब कुछ फ्री है । कारण था स्वास्थ्य चैकअप कैम्प में आने के लिए उन्हें एक दिन का काम छोड़ना पड़ता था, जिससे उनके घर का बजट बिगड़ने का ख़तरा था । महिलाओं की स्थिति तो और भी बदतर थी इन हालातों को महसूस करके यहाँ स्वरोज़गार क्रान्ति की आवश्यकता महसूस हुई और साथ ही महिला सशक्तिकरण की भी ।
पिलखुवा में उस समय बिजली आती कम थी और जाती ज़्यादा थी । बिना इन्वेटर के किसी भी घर का काम नहीं चलता था, खासकर मुझे और मेरे परिवार को तो मुम्बई में लाईट जाने की आदत ही नही थी और ऐसी स्थिति में ग़रीब लोगों को बिना लाईट के जीवन यापन करते हुए देखकर मेरी आँखे कितनी ही बार नम हो जाती थी । लोग चोरी छिपे बिजली के खम्बों पर लगे तारों पर कटिया (तार) डालकर रात-बेरात पंखे की हवा खा लेते थे । परन्तु पूरे दिन इस डर के मारे कटिया भी नहीं डाल पाते थे कि कहीं पुलिस आकर पकड़ ना ले जाये । आप समझ ही सकते हैं कि यह देखकर विद्धुत व संचार क्रान्ति की कितनी आवश्यकता महसूस हुई होगी । किसी भी बात को लेकर सजगता की बहुत कमी महसूस होती थी लोगों में | जैसे किसी भी चीज को लेकर अवेयरनेस बिलकुल नही थी । बच्चों में टैलेन्ट है लेकिन उनके लिये पढ़ने की कोई व्यवस्था नहीं है । खेल कूद की तो बात ही अलग है । अच्छे घरों की महिलाएँ अपने बच्चों को सरकारी स्कूल को दिखाकर डराया करती थी कि यदि सही पढ़ाई नहीं करोगे तो इस स्कूल में डलवा दूँगी । तब की बात तो क्या ही करूं ? आज 2019 में भी पिलखुवा जैसे शहर में जिसे खादी, तिरपाल व बैडशीट के लिये पूरे विश्व में जाना जाता है । गांधी के सपनों का शहर कहां जाता है जिसके बारे में (के.बी.सी.) कौन बनेगा करोडपति में अमिताभ बच्चन जी द्वारा पूछा जाता है कि सबसे अधिक करोडपत्तियों वाला टाऊन (कस्बा) कौन सा है? और सही उत्तर जिसका पिलखुवा होता है | ऐसे पिलखुवा की सड़कों पर किये गये अतिक्रमण, गलियों में लगे कूड़े के अम्बार को लेकर ग़रीब ही नहीं अमीर, धनी घरों की महिलाओं का दर्द भी आँखो में आँसू की तरह छलकते हुए देखा है मैने, क्योंकि उनके दामाद जी उनकी बेटी को शहर के बाहर हाईवे पर ही छोड़कर चले जाते हैं । गन्दगी व अतिक्रमण के कारण हमेशा जाम की शिकायत बने शहर में आकर उनके घर तक बिटियाँ को नहीं छोड़ते हैं ।
एक ग़रीब आदमी कैसे करें ? समस्या एक नहीं कई हो गई थी । मात्र एक स्वच्छता क्रान्ति से शुरू हुई मुहीम सम्पूर्ण स्वराज्य की 11 क्रान्तियों में तबदील हो चुकी थी लेकिन ये सब सम्भव कैसे हो ? एक और छोटे छोटे बच्चों को जीविका के लिये काम करते देखकर दुःख होता तो दूसरी तरफ बेरोज़गार लोगों व ख़ासकर युवाओं को सुबह से ही शराब पीकर जुआ खेलते देखता तो गुस्से से तमतमा उठता कई बार तो मैनें उन्हें पुलिस बुलाकर पकड़वाया भी परन्तु बाद में छुडाकर भी लाया, मन को बहुत दुःख हुआ कि इनकी क्या गलती है ? जब युवा के पास रोज़गार ही नही होगा तो युवा तो भटकेगा ही । तो गलती किसकी ? इसके लिये जिम्मेदार कोई है ? तो वो है सरकार !!! लेकिन मैनें कभी इसे सही नही माना कि सारी गलतियों का ठीकरा सरकार पर फोड़ दो । क्या हम जैसे पढ़े लिखे नौजवान इसके लिये ज़िम्मेदार नहीं ? सारे देश में घूमने के बाद भी हम अपने गांव, अपने शहर के लोगों के बारे में क्यों कुछ भी नही सोच पाते हैं । बस यही सोच थी जो कुछ कर गुजरने का जोश पैदा करती थी । कुछ ऐसा जो वास्तविक हो, जो सच्चा हो । प्रत्येक व्यक्ति का अपना हो स्वयं के लिये, खुद के लिये, खुद का राज हो । तब महात्मा गांधी जी के स्वराज का ख्याल आया । मैनें गांधी जी, विनोबा जी, रविन्द्र नाथ जी व अन्य महान हस्तियों को पढ़ा तो था परन्तु इस दृष्टि से कभी नहीं पढ़ा था ? सबसे बड़ी समस्या उस समय सामने आई जब प्रैक्टिकल करना शुरू किया तब युवा व अन्य लोग साथ में तो लगना चाहते थे परन्तु कैसे लगे ? बिना खर्च के , समाज सेवा स्वः मन से की गई सेवा है । जिसे ग़रीब व अमीर सभी करना चाहते हैं परन्तु अमीर तो अपनी सुविधा के अनुसार रोट्रक्ट, रोटरी क्लब, लियो-लायन्स क्लब, वस्त्र व्यापारी संघ व अन्य तरीकों से कर लेते फिर समझ में आया “अब समाज सेवा सैलरी लेके” । परन्तु कैसे ? इसी पर वर्षों की मन्त्रणा व प्रयोग करते करते एक ऐसे संगठन की परिकल्पना जहन में आई जो अराजनैतिक हो, साथ ही सैलरी पेड भी हो । जिनके कार्यकर्ताओं में देश को आगे ले जाने का जज़्बा हो इन युवाओं, देशभक्तों को अपने देश को आगे ले जाने के लिये किसी राजनीतिक पार्टी की आवश्यकता महसूस न हो, देश के लोगों में वहीं जज़्बा हो जो देश की आज़ादी के समय था | जो जयप्रकाश नारायण जी के आन्दोलन के समय था या ऐसा ही जज़्बा होगा जो जोश व जुनून के साथ अन्ना आन्दोलन के समय देश के युवाओं में देखने के लिये मिला था । वैसे देश के युवाओं में यही जोश व जुनून 2019 के लोकसभा चुनावों के समय भी दिखाई दिया है जिसका परिणाम आप सभी भलिभाँति जानते हैं । देश के युवा प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी पर अधिक विश्वास करते नज़र आ रहे हैं । देश के युवाओं को मोदी जी के हाथों में देश महफूज़ नजर आ रहा है । देश के युवा पिछले 5 वर्षों में अपने अधूरे स्वप्नों को साकार होते देखना चाहते हैं और इसीलिए एक जुट होकर यह नारा बुलन्द करते दिखाई दिये कि अबकी बार एक बार फिर से मोदी सरकार । उन्हें लगता है कि कश्मीर में धारा- 370, 35 ए, अयोध्या राम मन्दिर, तीन तलाक, जनसंख्या नियंत्रण कानून, बेरोज़गारी व भ्रष्टाचार से मुक्ति और देश के प्रति भक्ति का जज़्बा यदि मोदी है तो मुमकिन है ।
ये लगभग 2009 के पूर्वार्ध की बात है । मुझे कुछ दिन भाई मनीष सिसोदिया व अरविन्द केजरीवाल जी के साथ मौहल्ला समिति में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ उस समय अन्ना जी के नेतृत्व में स्वराज्य के लिये आन्दोलन करने का प्रारूप तैयार किया जा रहा था । मैं उस समय तक पिलखुवा में मौहल्ला समिति पर काफी कार्य कर रहा था और एक लिखित ड्राफ्ट भी मेरे पास था जिसे मैनें कुछ समय पूर्व ही रीता बहुगुणा जोशी जी को दिया था जो उस समय उ.प्र. कांग्रेस अध्यक्ष थी । भाई कुमार विश्वास ने मेरे उस ड्राफ्ट को राहुल गांधी तक पहुंचाने का प्रयास भी करने की बात भी कही थी । खैर अन्ना आन्दोलन स्वराज्य को छोड़कर केजरीवाल जी के नेतृत्व में आप पार्टी की ओर मुड़ गया और मेरा साथ भी उनसे छूट गया । परन्तु मेरे मन और अधिक इन सामाजिक क्रान्तियों की ओर झुकने लगा । धीरे-धीरे क्रान्तियों ने आगे बढ़कर 22 क्रान्तियों का रूप धारण कर एक पुस्तक का रूप ले लिया । इस बीच बहुत बार अलग-अलग मौहल्ला समितियों का गठन कर उसकी प्रक्रिया पर काम किया गया और आज सम्पूर्ण स्वराज्य जो सर्वोदय ( मौहल्ला ) समिति के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है । जिसमें केवल उन तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है जिन पर कार्य करके सम्पूर्ण स्वराज्य स्थापित किया जा सकता है परन्तु उन तथ्यों को क्रियान्वित किस प्रकार किया जायेगा ? मौहल्ला समिति या सर्वोदय कार्य किस प्रकार करेगी ? उसके गठन की क्या प्रक्रिया होगी ? उसके नियम व सिद्धान्त क्या क्या होगें ? ऐसे बहुत से प्रश्नों के उत्तर देने के लिये एक विशाल उपन्यास “सर्वोदय” का लेखन किया जा रहा है । जो मेरी इस पुस्तक के बाद शीघ्र आपके पास पहुँच जायेगा । यदि आपको मेरा यह प्रयास "सम्पूर्ण स्वराज” पुस्तक अच्छा लगे और आपसभी का आर्थिक सहयोग व आशीर्वाद मुझे प्राप्त हो पाए तो अगले कुछ ही समय में वह अनोखा उपन्यास जो सम्भवतः आगे जाकर ग्रन्थ का रूप ले सकता है और सम्भवतः विश्व का सबसे बड़ा स्टार्टअप सिद्ध हो सकता है । आप सबके सामने प्रस्तुत कर पाउँगा । जैसा कि प्रायः एक शोधकर्ता व लेखक के साथ होता है मेरी भी माली हालत ठीक नही चल रही है । अतः आप सभी से निवेदन है कि मुझे देश व दुनियाँ के प्रति समर्पित इस उपन्यास “सर्वोदय” को पूर्ण करने के लिये आपके आर्थिक सहयोग व आशीर्वाद की आवश्यकता है । मुझे आशा ही नही अपितु पूर्ण विश्वास है कि आप लोगों में बहुत से बुद्धिजीवियों व समाज सुधारकों के हाथ मेरे सहयोग के लिये अवश्य बढ़ेगें ।