स्वराज एक पवित्र शब्द है । यह एक वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ आत्म शासन और आत्म-संयम है । गाँधी जी के अनुसार स्वराज का अभिप्राय लोक-सम्मति के अनुसार होने वाला भारतवर्ष का शासन से है लोक सम्मति का निश्चय देश के बालिग लोगों की बड़ी-से-बड़ी तादात के मत के ज़रिये हो, फिर चाहे वे स्त्रियाँ हो या पुरुष, इसी देश के हो या इस देश में आकर बस गए हो । वे लोग ऐसे हो, जिन्होंने अपने शारीरिक श्रम के द्वारा राज्य की कुछ सेवा की हो और जिन्होंने मतदाताओं की सूचि में अपना नाम लिखवा लिया हो । सच्चा स्वराज थोड़े लोगों के सत्ता प्राप्त कर लेने में नहीं है, बल्कि जब सत्ता का दुरूपयोग हो रहा हो तब, सब लोगों के द्वारा उसका प्रतिकार करने की क्षमता प्राप्त करके हासिल किया जा सकता है । दूसरे शब्दों में, स्वराज जनता में इस बात का ज्ञान पैदा करके प्राप्त किया जा सकता है कि सत्ता पर कब्ज़ा करने और उसका नियमन करने की क्षमता उसमें है । (हिंदी नवजीवन २६-१-२५)
गाँधी जी के लिए स्वराज का अर्थ केवल राजनैतिक सत्ता का परिवर्तन नहीं था, बल्कि विदेशी सत्ता को हटाकर देश में एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना था, जिसमें छोटे-बड़े, ऊँच- नीच तथा अमीर-ग़रीब की खाइयाँ न रहें और प्रत्येक व्यक्ति को जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ती के साथ-साथ विकास की पूर्ण सुविधा भी प्राप्त हों । हमारे भारत वर्ष को स्वतन्त्र हुए आज सात दशक बीत चुके हैं लेकिन हम गाँधी जी के स्वराज के लक्ष्य से कोसों दूर हैं । भारत वर्ष को स्वतन्त्र होने के बाद से अब तक अनेक राजनैतिक उतर-चढ़ाव आये और चले गए लेकिन हर बार इस बात को बल मिलता रहा की ना केवल हमारे देश का अपितु दुनियाँ के किसी भी देश का कल्याण केवल और केवल गांधी जी के स्वराज के रास्ते पर चल कर ही हो सकता है । दोस्तों मेरे मोहल्ला स्वराज अर्थात सर्वोदय को समझने के लिए पहले गाँधी जी के स्वराज ग्राम स्वराज को पूर्ण रूप से समझना होगा जिससे मेरे हाथों तैयार किये गए “मोहल्ला स्वराज्य सर्वोदय” को समझना बहुत ही सरल हो जायेगा क्योंकि मैने गांधी जी के स्वराज के स्वप्न को आज की परिस्थिति तथा आज के परिवेष में ढालकर एक नए रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास भर किया है । तो आइये महात्मा गांधी जी के स्वराज्य को जाने...
राज्य एक बात है और स्वराज दूसरी बात । राज्य हिंसा से प्राप्त किया जा सकता है, किंतु स्वराज बिना अहिंसा के असंभव है इसलिए जो विचारशील हैं, वे राज्य को नही चाहते, बल्कि यह कहकर तडपते रहते हैं कि आओ हम सब स्वराज के लिए बैठकर जतन करें ।
“न त्वहं कामये राज्यम” यह उनका निषेधक और “यतेमहि स्वराज्ये” यह विधायक राजनैतिक उद्घोष होता है | स्वराज वैदिक परिभाषा का एक शब्द है । उसकी व्याख्या इस प्रकार की जाती है- स्वराज माने प्रत्येक व्यक्ति का राज, यानी ऐसा राज, जो प्रत्येक को अपना लगे, अर्थात सबका राज, दूसरे शब्दों में रामराज । स्वराज का अर्थ है, अपना ख़ुद का अपने पर राज । इस तरह सब लोगों में अपने पर काबू रख पाने की शक्ति पैदा होगी और उन्हें कर्तव्य का भान होगा तब स्वराज आएगा । स्वराज का एक लक्षण है- दुनिया की दूसरी कोई भी सत्ता अपने ऊपर चलने ना देना और दूसरे किसी पर अपनी सत्ता न चलाना, स्वराज का दूसरा लक्षण है | स्वराज शास्त्र नित्य-वर्धिष्णु है, अतः उसकी पद्धति देश-कालानुसार सतत परिवर्तनशील है, परन्तु उसने मूलतत्व शाश्वत है | उन शाश्वत तत्वों के आधार पर यह रूपरेखा खिंची गई है |
सम्पूर्ण स्वराज्य की बात हो और लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक जी का जिक्र ना हो ऐसा सम्भव नहीं है क्योंकि उनके द्वारा अपनी मंत्र के समान प्रभाव शाली वाणी से जब गर्जना की- कि “स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और उसे हम लेकर ही रहेंगे” तो यह गर्जना प्रत्येक भारतीय के मन मस्तिक में एक गूंज की भाँति अंकित हो गई और इस स्वराज्य के अधिकार को, गर्जना की गूंज को दिल में लिए जन सैलाब उमड़ा और कूद पड़ा आज़ादी की जंग में । स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, के मन्त्रदाता भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में लोकमान्य तिलक का स्थान सर्वश्रेष्ठ था । इसी कारण उनको भारतीय स्वाधीनता का मन्त्रदाता कहा जाता है ।
हमें हमारे राजनीतिक प्रजातन्त्र को सामाजिक प्रजातन्त्र भी बनाना होगा या बनाना चाहिये । सामाजिक प्रजातन्त्र एक ऐसी जीवन पद्धति है जो स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व को जीवन के सिद्धान्तों के रूप में स्वीकारती है । संकलित धरातल पर भारत में बहुस्तरीय असामानता है, कुछ को विकास के अवसर और अन्य को पतन के, कुछ लोग है जिनके पास अकूत धन सम्पत्ति है और बहुत लोग घोर दरिद्रता में जीवन बिता रहे हैं । “डॉ 0 भीमराव अम्बेडकर”
भारत वर्ष के स्वतन्त्रता संग्राम के समय हमारे पास एक से एक विचारक, समाज सुधारक, विधिवेत्ता व जनता को अपनी ओजस्वी वाणी से प्रभावित करने वाले बुद्धिजीवी थे । परन्तु उनके मस्तिष्क व विचारों का अधिकतर हिस्सा देश को आज़ादी (स्वतन्त्रता) दिलाने में लग गया और देश के स्वतन्त्र होते होते उनमें से अधिकतर विद्वजन अपनी उम्र के अन्तिम पड़ाव पर आ चुके थे । वे सभी देश की आज़ादी को लेकर इतना उलझे हुए थे कि यह ज्ञात होते हुए भी कि आगे अपने स्वतन्त्र भारत को किस दिशा में ले जाना है वे सब उन्हें क्रियान्वित नहीं कर पाएँ । कारण था पहले स्वतन्त्रता (आज़ादी) और फिर स्वतन्त्र देश को चलाने की ज़िम्मेदारियां, उसके बाद थोपे गये देश के विभाजन के कारण और युद्धों की विभिषिका इसका कारण बने, इन सभी में हमारे विद्वजन इतना उलझ गये कि देश को एक सुदृढ दिशा देने का कार्य पीछे छूटता गया । गांधी जी, अम्बेडकर साहब, गोलवकर साहब, कृपलानी जी, विनोबा भावे जी तथा रविन्द्रनाथ टैगोर जी ने कई बार प्रयास करने की कोशिश की तथा विचार किया कि जो दिशा स्वतन्त्र भारत की दिखाई दे रही है यह उचित नहीं है इसमें बहुत से सामाजिक बहलावों की आश्यकता है परन्तु उम्र के उस पड़ाव पर शरीर ने उनका साथ नहीं दिया और यही कारण है कि जहाँ बाबा साहेब अम्बेडकर जी सामाजिक प्रजातन्त्र बनाने पर ज़ोर देते रहे तो डॉ० रविन्द्रनाथ टैगोर, विनोबा भावे, महात्मा गांधी भी ग्राम सुदृढ करने के लिए योजनाबद्ध तरीक़े से पंचायती राज को लाने की वक़ालत करते रहे लेकिन साथ ही इन सभी के कथनों से यह भी स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि वो समझ चुके थे कि उनके सपनों का भारत उनके जीते जी बनना सम्भव नहीं । गाँधी जी ने तो स्पष्ट रूप से कहा भी कि – “स्वतन्त्र भारत के गाँवों का वह रूप जो सामान्य जन के लिये सम्पूर्ण स्वराज का भाव दे सके वह मेरे जीते जी सम्भव नहीं है”, तब विनोबा भावे जी ने पूछा भी था कि बाबू आप ऐसा क्यों कर रहे हो ? हम सब हैं ना आपके साथ तब बापू ने कहा था कि विनोबा जी अब हमारी उम्र उस आन्दोलन के लायक नहीं रही जैसा कि ग्राम स्वराज के लिये आवश्यक है ।
दोस्तों आज़ादी के मायने समय व परिवेष के साथ हमेशा (सदैव) बदलते रहे हैं । दोस्तों देश को आज़ाद हुए आज लगभग 7 दशक हो गये हैं । देश ने इस बीच कई युद्ध लड़े और कई क्रान्तियाँ कर देश को प्रगति का रास्ता दिखाया परन्तु एक क्रान्ति जिसका स्वप्न सतयुग से देखा जाता रहा है जो आज तक भी पूरा नहीं हो पाया है जिसका स्वप्न महात्मा गाँधी जी ने भी देखा था परन्तु उनका भी स्वप्न- स्वप्न ही रह गया पूर्ण नहीं हो पाया । एक बार फिर वह समय आ गया है कि हमारा भारत वर्ष ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व इस क्रान्ति की आवश्यकता महसूस कर रहा है । एक बार फिर प्रत्येक जाति, सभी वर्ग के लोग इस क्रान्ति के लिए मुँहबाये खड़े है और वो क्रान्ति है “सम्पूर्ण स्वराज्य क्रान्ति”। देश का हर ग़रीब, बेरोज़गार, प्रत्येक व्यापारी, किसान भाई और खास तौर पर मध्यमवर्ग आज महगाई, भ्रष्ट्राचार, बेरोज़गारी व जीवन के लिए आवश्यक वस्तुओं की कमी से जूझ रहा है । हर तरफ बंदिशें, हर तरफ लॉ एन आर्डर को धता बताते लोग । नेताओं के वेश में गुण्डा तत्व है। रोजगार, व्यापार, लघु उधोग से परेशान व्यापारीगण है । काम, शिक्षा, नौकरी, सुरक्षा, सफाई यहाँ तक की शुद्ध हवा और पानी के लिए भी तरसते लोग । आज के समय आपकी ज़िन्दगी के फैसले दिल्ली या आपके प्रदेश की सरकार में बैठे लोग करते हैं । उपरोक्त सभी चीजें या बातें तभी प्राप्त हो सकती है जब देश में स्वराज्य आये और वो भी सम्पूर्ण स्वराज्य जो मेरे विचार से केवल देश के सभी मौहल्लों में सर्वोदय समिति बनाने से ही प्राप्त हो सकता है । जिसे “सर्वोदय” मोहल्ला स्वराज्य कह सकते है |
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