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शोध क्रान्ति

पुरातन काल में शोध कार्य में भारत वर्ष विश्व में अग्रणीय रहा है । ऋषियों,  महर्षियों,  मुनीऋषीयों द्वारा वैदिक काल में किये गये शोध कार्यों के आधार पर ही विश्व में मानव संस्कृति का उत्थान हुआ । उसके पश्चात भी भारत वंशियों ने लगातार शोध कार्य करके प्रत्येक क्षेत्र में मनुष्य को आगे बढ़ने के लिए मार्गदर्शन किया है । फिर चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, चिकित्सा का,  योग,  विज्ञान,  ज्योतिष,  हस्तरेखा ज्ञान,  गणित,  भूगोल, राजनीति,  कूटनीति,  युद्धनीति,  भोजन,  खेल,  शस्त्र,  ज्ञान,  हवा, पानी, नदियाँ,  अन्तरिक्ष कोई भी क्षेत्र क्यों ना हो इन सब विषयों पर तथा अन्य बहुत सारे विषयों पर भारत वर्ष में हजारों वर्ष पूर्व ही अति उत्तम व मानव उपयोगी शोध हो चुके हैं । परन्तु हमारे लिए दुर्भाग्य की बात यह है कि वर्तमान में कुछ क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में शोध कार्य नगन्य प्राय है । जो किसी भी देश राष्ट्र के लिए विचारणीय प्रश्न है । इसका सबूत है विश्व स्तर पर होने वाले शोध व उनके पैटेन्ट जो कि भारत वर्ष से ना के बराबर होते हैं । क्योंकि इस समय हमारे देश में शोध को लेकर ना तो लोगों में सोच है ना ही उत्साह जिसका एक प्रमुख कारण है । शोध के प्रति सरकार की नीरसता भरी नीतियाँ । निरन्तर सरकारों ने शोध कार्य को आवश्यक कार्यों की श्रेणी में नही रखा जिसके दुष्परिणाम से विश्व में हल्दी जैसी शुद्ध भारतीय स्वदेशी वस्तु का पैटेन्ट भी विदेशों के नाम है । यह देश के लिए उसके शोधकर्ताओं व सरकार के लिए, शर्म की बात है । आज सितम्बर 2020 में लोक डाउन के हटा देने के बाद भी यह समाचार सुनकर दुःख होता है की देश में जितने भी शोधकर्ता हैं उन्हें पिछले कई महीनों से लगभग मार्च से उनकी स्कोलरशिप नहीं मिली है जिसके कारण उनकी दिनचर्या मुश्किल हो रही है |

ज्ञान के अर्जन के लिए कोई सीमा नहीं होती । ज्ञान को ना धर्म की दीवारें रोक सकती है ना जाति विशेष की बेड़ियाँ जकड़ सकती हैं । ना देश की सीमाएँ बाँध सकती हैं । ग़रीबी-अमीरी का प्रभाव ज्ञान को अपने मकड़जाल में नहीं फँसा सकता । सबसे अजीब व महत्वपूर्ण बात तो यह है कि ज्ञान प्राप्ती या ज्ञानवान होने के लिए शिक्षा प्राप्त करना या शिक्षित होना कोई अति आवश्यक नहीं है । लगातार इन्टयूशन हो रहा है कि एक ओर क्रान्ति को सम्पूर्ण स्वराज्य क्रान्ति अभियान में जोड़ना आवश्यक है और वो क्रान्ति है  शोध क्रान्ति” आप सोच रहे होंगे कि इसे (शोध क्रान्ति को) सम्पूर्ण स्वराज्य में जोड़ने के लिए ऐसी कौन सी आफत आ गयी । ऐसा क्या महत्वपूर्ण है इसमें ? और ऐसा क्या अलग है ? जो शेष 21 क्रान्तियों से पूर्ण नहीं हो पाएगा,  तो यहाँ समझ लीजिए कि यदि हमारा प्यारा भारत वर्ष ज्ञान के क्षेत्र में विश्व में सर्वोपरी है तो वह उन ऋषियों, महर्षियों की शोध के कारण ही है जिन्होनें अपने जीवन की अमूल्य समय मानव,  जीव-जन्तु,  प्रकृति,  आकाश,  अन्तरिक्ष इत्यादि को समझकर उन पर हज़ारों वर्षों की घोर तपस्या व शोध कार्य करने के पश्चात ही उन्होनें मानव जाति को वेदों जैसा अकाट्य ज्ञान दिया । मानव को जीवन जीने का आधार दिया तो ज्योतिष जैसा आंतरिक्ष विज्ञान दिया । आयुर्वेद,  धनुर्वेद जैसा ज्ञान दिया । जिसके कारण आज भी सकल विश्व में हमारा सम्मान होता है परन्तु दुर्भाग्य पूर्ण बात यह है कि हमारे पूर्वजों द्वारा दिए गये ज्ञान से हमनें धन लाभ व प्रसिद्धी तो प्राप्त की लेकिन उसे आगे बढ़ाने के लिए हमनें उसमें आज के अनुसार शोध की आवश्यकता नहीं समझी | आज हमारे महर्षियों द्वारा दिये गये ज्ञान का भंडार उस संस्कृत भाषा में है जिसे पिछली पीढ़ी ने भुला सा दिया है और आज की पीढ़ी ने उसे अपनाया ही नहीं है । उसे आगे बढ़ाना तो बहुत दूर की बात है आज के परिवेश के अनुसार उसमें बदलाव (शोध कार्य) करने तक की हमारी सोच नहीं रही । जबकि हमारे ज्ञान को सीखकर विदेशियों ने उसे नया रूप प्रदान कर उस ज्ञान को अपना बना लिया । बहुत से उदाहरण है जैसे-

ज्योतिष विज्ञान

 

महर्षि भृगु,  महर्षि पाराशर के द्वारा हजारों वर्षों की शोध के पश्चात मानव जाति को खुशहाली व सम्पन्नता के लिए दिया गया ज्योतिष विज्ञान,  जहाँ हमारे भारत वर्ष में एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी में जाने वाली एक विध्या बन कर रह गई वहीं आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व बेबलोन के समय आए अंतरिक्षविधों ने हमारे ज्योतिष विज्ञान पर गहन शोध कार्य किया और हमारे ग्रह और नक्षत्रों पर आधारित ज्योतिष विज्ञान में 12 राशियों को जोड़कर उसे एस्ट्रॉलोजी के एक नये रूप में प्रस्तुत कर दिया |

योग 

दूसरा मानव शरीर व आत्मा को स्वस्थ व शान्त रखने के लिए हमारे महर्षियों ने हजारों वर्षों के गहन शोध के पश्चात मानव को योग जैसी अद्भुत कलाएँ, प्रक्रिया प्रदान की जिसे विदेशियों ने हाथों हाथ अपनाया व उसे एक नये योगा’ के रूप में पुनः मानव प्रजाति को भेंट कर दिया | ये तो साधुवाद के पात्र है योग गुरू अयंगर जीयोग गुरू बाबा रामदेव जी कि उन्होनें विदेश में जाकर योगा बन गये हमारे योग को पुनः योग बनाने में दिन रात एक दिये जिसमें बहुत बड़ा हाथ हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का भी रहा है जिनके अथक प्रयासों से 21 जून को पूरे विश्व ने योग दिवस के रूप में मान्यता प्रदान की । 

आयुर्वेद

 

तीसरा आयुर्वेद जिस आयुर्वेद के कारण हमारा भारत वर्ष सम्पूर्ण विश्व में एक विशेष ख्याति रखता था लोग दूसरे देशों से भारत आकर यहाँ की चिकित्सा पद्धति व शल्य चिकित्सा सीखते, अध्ययन करते और फिर अपने देश में जाकर लोगों के कष्ट व बीमारियाँ दूर कर उनका जीवन बचाते थे | आज उसी आयुर्वेद को एलोपैथी के समक्ष दोयम दर्जे का माना जाता है । यहाँ भी बाबा रामदेव जी द्वारा स्थापित पतंजलि आयुर्वेद संस्थान के पश्चात स्थिति में सुधार दिखाई दे रहा है । 

नाट्य शास्त्र 

आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व अदरणीय भरत मुनि जी ने नाट्य शास्त्र की रचना की थी । जिसमें नृत्य, गीत, संगीत सौन्दर्य कला (मैकअप) व अभिनय कला का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया था । हमारा नाट्य शास्त्र का ज्ञान वहीं तक सीमित रह गया जबकि नाट्य शास्त्र का अध्ययन कर एक रसियन स्तानिस्लाव्स्की जी ने अभिनय की एक नई विधा  को जन्म दे दिया और एक जर्मन दार्शनिक बर्टोल्ट ब्रेख्त ने भी अभिनय प्रस्तुति को एक नई विधा स्ट्रीट प्ले [नुक्कड़ नाटक] के रूप में प्रस्तुत किया किन्तु हमारे देश में अपने ही देश में तैयार हुए नाट्य शास्त्र को उठाकर देखने की भी जहमत नहीं उठाई, उस पर नये शोध की तो बात ही छोड़ दीजिए । नाट्य शास्त्र पर आधारित हमारी रामलीला व रासलीला से कौन परिचित नहीं है ?

     ऐसे बहुत से शोध है जिन पर सीना चौड़ा करके हम नाम तो कमाना चाहते हैं लेकिन उन पर काम करने के लिए तैयार नहीं है । दुःख होता है ये सुनकर कि हमारे देश में पैदा होने वाली हल्दी का पेटेन्ट किसी और देश के आदमी के नाम हो जाता है और हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहते हैं । इसीलिए इस शोध क्रान्ति की आवश्यकता महसूस हो रही है । बचपन से ही सर्वोदय के द्वारा बच्चों में शोध करने के प्रति प्रोत्साहन पैदा किया जाएगा । उसके पश्चात प्रति वर्ष भारत वर्ष से भी शोध पर पेटेन्ट कराएँ जा सकेंगे |