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शहरी हरित क्रान्ति

हरित क्रान्ति पर विस्तार पूर्वक चर्चा करना बहुत ही ज़रूरी है । बहुत से प्रश्न हैं जो किसान तथा फसल के जहन में आते ही स्वतः ही उठ जाते हैं । हमारे देश का अन्नदाता या फिर दुनिया का अन्नदाता  कभी भी रोटियों से ऊपर क्यों नहीं उठ पाया । देश का अन्नदाता होते हुए भी उस बेचारे को अपने परिवार के लिए रोटियों को जुटाने में आत्म हत्या क्यों करनी पड़ती हैं । कुछ पॉइंट ज़रूर मैं यहाँ दर्ज करना चाहूँगा । जैसे : - 

1- प्रत्येक सर्वोदय (मौहल्ला  समिति) अपने आस-पास के गाँव के खेत को अडॉप्ट करके (किराये पर लेकर) उन खेतों पर खुद खेती कर सकते हैं या किसान से ही पूरी साल का अग्रीमेंट कर लेना चाहिए की साल में कितनी फसल लेनी हैं (उगानी हैं) और कौन-कौन सी फसलें लेनी (उगानी) हैं ? इसके लिए किसान को मदद के रूप में कुछ एमाउन्ट भी अडवांस के तौर पर दिया जा सकता हैं । यदि किसान बड़ा हो तो कुछ समितियां मिलकर भी (एक जुट होकर) किसान से अग्रीमेंट कर सकती हैं । इससे होने वाले फायदे में पहला तो ये कि मौहल्ला समितियों को अनाज से सम्बंधित होने वाली समस्याएं नहीं आयेगी । दूसरे-देश के किसान भाइयों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिल सकेगा । तीसरे- किसानों को अपनी फसल के लिए आत्म हत्या करने की नौबत नहीं आएगी और किसान भाई अपने घर के खर्चे मौहल्ला समिति के द्वारा निकालकर शेष बचे अनाज को अपने हिसाब से अपनी इच्छानुसार बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे । खेती को इस प्रकार अट्रेक्टिव भी बनाया जा सकता है की लोग स्वतः ही आपके खेतों की ओर आकृषित हो सकें । जैसे : - हम  आस-पास के कई खेतों को लेकर उनमें भिन्न - भिन्न प्रकार की मौसमी सब्जियां जिसमें मटर, टमाटर, बैंगन, भिन्डी, गोभी, शिमला मिर्च, घीया, तोरी, टिंडा, करेला, हरी मिर्च, खीरा, ककड़ी, मूली, शलगम इत्यादि तथा मोहल्ला वासियों को अपने खेतों तक आने के लिए प्रेरित किया जाये कि वे आयें और स्वयं खेतों से अपनी पसन्द की सब्जियाँ तोड़े या सहयोगी से तुड़वा सकते हैं और तुलवाकर दाम चुकाकर ले जाएँ | इसे हम सब्जी नर्सरी के रूप में जानेगें । सभी सब्जियों के दाम की पूर्ण जानकारी बोर्ड पर पहले ही लगाई जा चुकी होगी । नर्सरी पर छोटे से रेस्ट्रोरेन्ट की भी व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे फैमिली के साथ आने वाले लोग वहां पर हल्का-फुल्का चाय-नाश्ता भी कर सकें । साथ ही नर्सरी के पास गाय- भैसों व बकरी के तबेले की भी व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे महिलायें सुबह-शाम घूमाने का कार्यक्रम भी बना सकें और घर के लिए दूध व सब्जियाँ भी ताजा ला सकें । 

यहाँ पर हल्के फुल्के व्यायाम की व्यवस्था भी की जा सकती है । जिससे लोग प्रातः घूमने के साथ हल्का व्यायाम भी कर सकें दिल्ली सरकार की तरह ओर्गनिक खेती के द्वारा ही सब्जियां उगाई जानी चाहिए । साथ ही कुछ औषधियाँ भी उगाई जा सकती हैं जैसे ओलिविरा, हल्दी, फूलों की खेती जिससे खेती पर आने वाले खर्च को पूरा किया जा सकें । इसे हम शहरी हरित क्रान्ति के अंतर्गत भी विस्तारित कर सकते हैं । शहरी हरित क्रान्ति के द्वारा उन किसान भाईयों को जिन्होंने अपनी उपजाऊ ज़मीनें सरकार को, डवलपमेन्ट करने के लिये, बिल्डर को सोसायटी बनाने के लिये दे दी हैं । उन किसानों को जो खेती से दूर हो गये हैं उन्हें पुनः अपनी ज़मीन का हक़ दिलाकर खेती करने के लिये प्रेरित करना है । साथ ही सर्वोदय समिति विनोबा भावे जी के भू आन्दोलन को आगे बढ़ाने का कार्य भी करेगी । जिसने ज़मीन बेची है उसे उन सोसायटी की छतों पर कम से कम 25 प्रतिशत हिस्सा खेती के लिए मिलना चाहिए तथा 75 प्रतिशत को उन लोगों को दिया जाए जो खेती करके अपना पालन पोषण करना चाहते हैं । ये शर्त है कि उनके पास ज़मीन नहीं होनी चाहिए । इस 75 प्रतिशत को कई लोगों में अलग-अलग छतों के अनुसार बांटा जाना चाहिए । जिन लोगों पर अपना घर व ज़मीन (किसी भी प्रकार की) ना हो । भविष्य में जब कि उस स्थान पर पुरानी बिल्डिंग तोड़कर नई व उंची बिल्डिंग बनेगी तब उनको भी इस बिल्डिंग में फ्लैट मिलने का अधिकार मिलेगा । तब भी ऊपर की छत पर मूल मालिक को 25 प्रतिशत छत व अन्य नये लोगों को छत में हिस्सेदारी उन्हें जिनके पास किसी भी प्रकार की ज़मीन या घर नहीं है । एक    

          मौहल्ले में जितने परिवार हैं उन्हें खाने के लिये क्या क्या व कितने अनाज की आवश्यकता  होगी ? यह निश्चित कर उस अनाज को पैदा करने की जिम्मेदारी मौहल्ला वासियों की ही होनी चाहिए, जो अनाज,  तरकारी, सब्जियाँ पैदा करेंगे उनको प्रोसिस करके बनने वाला पक्का माल भी वहीं उसी मौहल्ले के लोगों के द्वारा ही बनाया जाना चाहिए या मौहल्ले से बड़ी इकाई उस कार्य को करें यह पक्का माल बनने के लिये गाँव,  ज़्यादा से ज़्यादा उस शहर में एक यूनिट लगानी होगी, पर कच्चा माल शहर से बाहर बनने के लिये नही जाना चाहिए । इससे पूरे देश में खेती से पूरक ग्रामोद्योगों का जाल फैल जाएगा । राज्य सरकार इसे संरक्षण प्रदान करें । जिस प्रकार अपने भोजन को खाने की ज़िम्मेदारी दूसरे पर नहीं छोड़ी जा सकती । जिस प्रकार स्वस्थ शरीर के लिये दूसरे को व्यायाम के लिये कहकर नही छोड़ा जा सकता है । उसी प्रकार शासन व धर्म की व्यवस्था भी केवल दूसरों के सहारे नही छोड़ी जा सकती । उसे आपको भी स्वयं मानना व करना होगा । लोगों में संग्रह करने की प्रथा को ख़त्म करना होगा जिससे जैसे ही उनके पास संग्रह होगा तो उसे वे जरूरतमंद को बांट देंगें, लेकिन यह तभी सम्भव होगा जब व्यक्ति को किसी भी चीज़ की आवश्यकता पड़ने पर दूसरे लोग सहर्ष उसकी आवश्यकता की पूर्ती के लिये आगे आए या सर्वोदय (मौहल्ला समिति) या सरकार कोई भी उसकी मदद को सतत् तैयार हो ।