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शिक्षा क्रान्ति

अभी तक की सरकारों ने वैसे तो शिक्षा निति पर काफी कार्य किया है खास कर आजकल दिल्ली में मनीष सिसोदिया द्वारा स्कूलों व शिक्षा को लेकर काफी प्रशंसनीय कार्य करने की ख़बरे आती है परन्तु इसमें भी कोई दो राय नहीं की हमें अपनी शिक्षा निति में क्रांतिकारी परिवर्तन करने की आवश्यकता है । हमारे यहाँ व्यक्ति की स्वयं के द्वारा की गई ग़लतियों पर भी सरकार मुआवज़ा देती है जैसे ग़लत ड्राइविंग करनें पर होने वाले एक्सीडेंट के कारण, गंदगी के कारण होने वाली बीमारियाँ हो या डेंगू का प्रकोप ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिसमें ग़लती स्वयं लोग करते हैं लेकिन भरती सरकार है परन्तु शिक्षा ही एक ऐसा विषय है जिसमें ग़लती  स्वयं सरकार के द्वारा होती है लेकिन उसका खामियाज़ा व्यक्ति को भुगतना पड़ता है अर्थात शिक्षा निति का निर्धारण या पढाई की पुस्तकों का तथा उनके विषयों का निर्धारण (स्लेबस) स्वयं सरकार के द्वारा तय होता है यहाँ तक की पढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी काफी हद तक सरकारी स्कूलों ने उठा रखी है लेकिन अपनी ज़िन्दगी के 15 से 20 मूल्यवान वर्ष सरकार द्वारा निर्धारित पढ़ाई पर लगाने के पश्चात् भी व्यक्ति मारा-मारा फिरता है । इसी को देखते हुए ऐसा लगता है की देश में शिक्षा क्रांति की बहुत सख्त आवश्यकता है ।