स्वच्छता क्रान्ति
स्वच्छता हमारे ही नहीं अपितु सभी जीवों के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज़रुरी है । हमारे साहित्य में भी इसका बड़ी ही सिद्धत के साथ वर्णन किया गया है । तन और मन इन दो तरह की सफाई का वर्णन साहित्य तथा शास्त्रों में किया गया है लेकिन इन दोनों के अतिरिक्त तीसरी सफाई की इन दोनों के साथ साथ उतनी ही ज़रूरत है अपने घर के आँगन व अपने पर्यावरण की सफाई तथा शुद्धता की | जिसपर सामान्य लोगो का ध्यान बिलकुल भी नहीं है । आदरणीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासों ने देश के जनमानस का ध्यान इस ओर अवश्य खींचा है । घर से निकलने वाला अपशिष्ट प्रतिदिन घरों से निकलने वाली महत्वपूर्ण वस्तुओं का उपयोग कर उनसे बहुत सारे लाभ उठा सकते हैं । इसके लिए सर्वप्रथम तो हमें लोगों की सोच को बदलना होगा उस सोच को जो घर से निकलने वाले सामान को कचरा कहकर पुकारते हैं । जबकि मेरी नज़र में वे वस्तुएँ अति महत्वपूर्ण है और सभी को इसे अति महत्वपूर्ण वस्तुओं के समान ही देखना होगा और खासकर नेताओं को ये बात समझानी होगी । यदि नेताओं के यह बात समझ में आ गई तो वे सरकार को समझा पाएगें और सरकार को समझ में आ गई तो वे बहुत जल्दी इस बात को आम जनता को समझा देगें। आजकल ये तो सभी जानते हैं कि सरकार जो चाहे वह आम जनता को आसानी से समझा सकती है । निसंदेह यह एक अच्छी बात भी है । सीधी सी बात है कि सरकार के पास इसके लिए एक बजट होता है उसके पास विज्ञापन का जरिया है । उसके पास सेलेब्रिटीज हैं जिनसे वह उन विषयों को हाईलाईट करा सकती है । इसलिए अब समय आ गया है कि सरकार को शौचालय की भांति घर से प्रतिदिन निकलने वाले सामान को महत्वपूर्ण समझकर उसकी महत्वता को आम जनता को समझाना चाहिए । क्योंकि जब तक प्रत्येक गृहिणी अपने घर के सामान को महत्वपूर्ण ना समझकर उसे कचरा समझती रहेंगी तब तक वह उसे हेय दृष्टि से ही देखती रहेगी । जिसे देखकर ही उसे घिन्न आती है ।
और जिसको देखकर ही आपको घिन्न आए उसके उपयोग के विषय में आप सोच भी नहीं सकते । जबकि प्रकृति ने प्रत्येक अनउपयोगी वस्तु को रिसाईकिल करने के लिए कीट-पतंगे, जानवर बनाएँ हैं जो एक दूसरे के मृत शरीर को उनके द्वारा किए शौच को भी खाकर रिसाईकिल कर देते हैं । गुबरैल इसकी महत्वपूर्ण उदाहरण है जो जानवरों के मल तक को रिसाईकिल कर देता है । केचुएं मिटटी व अन्य वस्तुओं को खाकर उसे अच्छी खाद्य में परिवर्तित कर देते हैं | एक हम मनुष्य कि जो हमारे घरों से निकले अवशिष्ट को उठाकर ले जाता है जिसके कारण हमारा घर साफ-होता है और हमें स्वच्छ हवा प्राप्त होती है हम उसी सफाई कर्मचारी को हेय दृष्टि से देखते हैं । उसे नीचा समझते हैं जबकि वह हमारे लिए एक डॉक्टर की तरह कार्य करता है जिस प्रकार एक डॉक्टर इन्सानों के शरीर में होने वाले रोग को ऑपरेट करके उसे निकलता है और हमें स्वस्थ रखने में सहायता करता है उसी प्रकार एक सफाई कर्मचारी हमारे घर में रोज पैदा होने वाले अवशिष्ट को हमारे घर से निकालकर हमें स्वच्छ हवा में सांस लेने का अवसर देते हैं वह सोच जो घरों से निकलने वाले सामान को कचरा समझ कर उससे घृणा करते हैं । हमें इसी सोच को बदलकर घर से निकलने वाले सामान को मूल्यवान समझ कर उसको तीन से चार जगह छाँटना होगा और बहुत ही ज़िम्मेदारी के साथ उस सामान को सर्वोदय समिति को देना होगा और सर्वोदय प्रत्येक मौहल्ले से निकले इस महत्वपूर्ण सामान को रिसाईकिल करके पालतू जानवरों को खिलाकर, खाली ज़मीनी गड्ढों में भराव करने के पश्चात बचे हुए अवशिष्ट को खेतों में दबाकर उससे खाद बनाने का कार्य करेगी । यदि घर से निकलने वाले सामान को तीन से चार जगह छंटनी कर दिया जाए तो घर से निकलने वाले सामान की मात्रा बहुत कम हो जाएगी और घर से निकलने वाला कोई भी सामान बेकार नहीं होगा । कॉपी-क़िताब, न्यूज़ पेपर, गत्ता, प्लास्टिक का सामान व बोतलें, काँच की बोतलें व सामान सब रिसाईकिल के लिए बिक जाएगा । रसोई से निकलने वाली रोटी, सब्जी, आटा, चाय पत्ती इत्यादि सब जानवरों के खाने के काम आएगा । धूल मिटटी खेतों में मिल जाएगी और इन सब के पश्चात बचने वाले सामान को खेतों में दबाकर उससे केचुएँ के द्वारा खाद बनाने के काम में लाया जाएगा ।
“आज हर कोई कहता है कि देश सेवा सत्ता द्वारा होनी चाहिए लेकिन अपने मौहल्ले की सफाई कौन करेगा ? म्यूनिस्पिल्टी । यानि सफाई आपके हाथ में नहीं | म्यूनिस्पिल्टी के हाथ में है । सफाई करने की जगह तो म्यूनिस्पिल्टी ने ले ली है जहाँ सफाई सही तरह से ज़िम्मेदारी के साथ नहीं की गई वहाँ बीमारियाँ तो होंगी ही वहाँ बीमार कौन पड़ेगा ? क्या म्यूनिस्पिल्टी के लोग ? नहीं.... बीमार आप या आपका परिवार पड़ेगा | उससे स्वास्थ्य व धन की हानि किसकी होगी आपकी, नगर पालिका कि या कार्पोरेशन की | किसीकी नहीं केवल आपकी और आपके परिवार की होगी | तो आपके घर पर मौहल्ले की सफाई की ज़िम्मेदारी किसकी होनी चाहिए..... आपकी ।
हाँ जी नगर पालिका उसको सहयोग अवश्य कर सकती है परन्तु ज़िम्मेदारी नहीं ले सकती क्योंकि यह ज़िम्मेदारी हमारी खुद की है । पहले अपने बच्चों पर प्यार स्वयं लुटाने का चलन था अब तो बच्चे के पैदा होने से लेकर जवान होकर बुढ़ापे तक दूसरे पर निर्भरता बढ़ती जा रही है । बच्चा पैदा होते ही आया रख ली जाती है फिर उसे क्रैश में डाल दिया जाता है फिर उसे हॉस्टल में शिक्षा दिलाने के बहाने डाल दिया जाता है । अन्तिम समय में वही पुत्र आपको वृद्धाश्रम में डाल देता है । “यह सत्य है कि सेवा के लिये सत्ता की ज़रूरत नहीं” । आज सेवा के लिये सत्ता बाधक बनती जा रही है” ।
“ सहिष्णुता पर आधारित होने के कारण हिन्दू धर्म सभी धर्मों का अस्तित्व स्वीकार करता है” ...... मैं सत्य को ही ईश्वर मानता हूँ और अखिल विश्व को अपना देश । ( स्वामी विवेकानन्द - सितम्बर 1893 विश्व धर्म परिषद् के भाषण में )